Wednesday 25 June 2014

tona totka

tona totka
जब से मनुष्य ने समाज बनाना आरंभ किया, सामाजिक व्यवस्था लागू की, रोगों से बचाव के बारे में सोचा, तभी से उसने अताकिर्कता के काले सायों के कारण खोजना भी शुरू कर दिया। रोगों आरै विकारों से बचाव के उपाय जब मनुष्य को अपनी समझ से परे प्रतीत होने लगे संभवतः तभी जादू टोने, शामानी धर्म और अन्य चमत्कारिक उपचार विधियां पनपने लगीं। मानसिक रोगों की गुत्थियां सलुझाने की दिशा में चाहे अभी अधूरी ही क्यों न हो अदभुत पग्रति हुई है। फिर भी विश्व के अनेक भागों में स्त्री-पुरूष अब तक अतीन्दिय्र प्रभावों की छाया में जी रहे हैं। इसी सदंर्भ में नीचे चार रोग विवरण दिए जा रहे हैं जिनसे शामानी धर्म और टोना-टोटका की कार्य प्रणाली पर पक्राश पडत़ा है। इन विवरणों का अध्ययन करने के पश्चात् हम यह साचेंगे कि प्रेत जगत के ये पोंगापंथी विश्वास आज की प्रगतिशील दुनिया में आखिऱ क्यों मौजूद हैं और यह भी कि आज का आदमी इन प्रेत छायाओं से निजात पाने में लाचार क्यों है।

सीधी दूरी के हिसाब से, दिल्ली से लगभग 160 किलामीटर दूर एक छोटा गांव है। गांव के मुखिया सुरेन्द्र चौधरी हैं। आज गांव का हर व्यक्ति उनके घर पहुंच रहा है। उनकी बहू मीरा की देह में एक बुरी आत्मा ने प्रवेश कर लिया है। मीरा पूरी तरह उसके प्रभाव में है। उसकी देह झूल रही है, चेहरा सुरमई हो गया है, बाल बिखरे हैं और आखें लाल हैं। वह अनर्गल प्रलाप कर रही है, क्रोध में चीख रही है और पूरी तरह आपे से बाहर हो गई है। गांव का एक बजुर्ग उससे पूछता है कि वह कौन है उसने मीरा को वशीकृत क्यों किया है और उसकी मंशा क्या है। सवाल से चौंक कर आत्मा जोंरों से अट्टहास करती है और कहती है ‘अच्छा तो तुम यह जानना चाहते हो कि मैं कौन हूं? मैं रत्ना हूं, मीरा की सहेली’ एकत्रित लोगों में सन्नाटा छा जाता है। रत्ना की मृत्यु हो चुकी है। सात माह पूर्व उसने कुएं में कूद कर अपनी जान दे दी थी। वही बुजुर्ग फिर सवाल करता है, ‘तुम यहां क्यों आई हो?’ रत्ना की आत्मा मुस्कराती है और कहती है, ‘मैं मीरा के पति को ले जाने के लिए आई हूं। वह आदमी बुरा है वह मेरी सहेली को पीटता है और उसके साथ जानवरों जैसा सुलूक करता है। उसमें आत्मा नहीं है उसे मरना ही होगा।’
पूरा एकत्रित जनसमूह स्तब्ध रह जाता है। आत्मा का प्रलाप जारी रहता है, ‘जाओ मेरी सहेली की सास को लाओ, डायन है वो। वही है जिसके उकसाने पर मेरी सहेली के आदमी के सिर पर शैतान सवार हो जाता है। लाओ मैं उसकी जब़ान खींच लूंगी।’ लोगों की कानाफूसी बढ़ जाती है। भीड़ में ऐसी अनेक स्त्रियां हैं जिन्हें मीरा की सास से अपने हिसाब चुकता करने हैं। वे भीतर ही भीतर यह चाहती हैं कि आत्मा जो भी कह रही है, कर दिखाए। वातार्लाप करने वाला बजुर्ग सयाना है। वह कहता है, ‘अगर तुम मीरा के पति और सास को मार डालोगी तो मीरा  अकेली पड़ जाएगी। ऐसा तो तुम भी नहीं चाहोगी। हम इस बात का ध्यान रखेगे कि वो तुम्हारी सहेली के प्रति आगे से दुव्यवहार न करें। अगर उन्होने फिर भी अपना रवैया नहीं बदला तो जो तुम्हारे मन में आए वह करना।’ 

आत्मा कुछ नरम पडती है, ‘तमु वचन देते हो?’ ‘हां!’, बजुर्ग की इस आवाज़ के साथ भीड़ में बहुत सारे लोग हामी भर देते हैं। आत्मा लौट जाती है। मीरा चेतना खोकर धरती पर गिर जाती है। दो प्रौढ़ महिलाएं उस पर ठंडे पानी के छींटे देती हैं। तीसरी उसकी बांह में पूजा का धागा बांध देती है। मीरा धीरे से अपनी आखें खोलती हैं वह अपने चारों तरफ़ लोगों की भीड़ देखकर भौचक्की रह जाती है। वह धीमे स्वर में पूछती है, ‘क्या हो गया? मैं कहां हूं?’ उसका पूरा बदन पसीने से भीगा है और उसे जोरों की प्यास महससू हो रही है। औरतें उसकी देखभाल में जुट जाती हैं। धीरे धीरे मीरा का चेहरा सामान्य होने लगता है। किस्सा खत्म हो जाता है। भीड़ छितराने लगी है।

र.स. 45 वर्षीय व्यापारी हैं। उनका भरापूरा परिवार है। र्वद्ध माता, समर्पित पत्नी एवं दो बच्चे। उनका व्यवसाय भी खूब पनप रहा है और लोगों में उनकी साख है। वे नियमित रूप से मंदिर जाते हैं, गरीबों की मदद करते हैं और समाज में उनका सम्मान है। इतना होने पर भी पिछले दो महीनों से वे अपने आप ही में डूबे रहते हैं। कामकाज मे उनका मन नहीं लगता और न किसी से मिलने जुलने का मन करता है। वे हर वक्त बस गहरी उदासी से घिरे रहते हैं। बिना बात रोने लगते हैं, अपने कर्तव्यों और जरू़रतों से विमुख हो गए हैं, हर वक्त दर्द और तकलीफ़ की शिकायत करते हैं, आराम करने पर भी गहरी थकान महससू करते हैं। पारिवारिक चिकित्सक ने उनका शारीरिक परीक्षण करने पर उनमें किसी तरह की खराबी नहीं देखी। जब सभी नैदानिक परीक्षणों का भी कोई नतीजा नहीं निकला तो उनकी घरवाली को पड़ोस की एक भली महिला ने सुझाया, ‘जरू़र तुम्हारे पति को किसी की बुरी नजऱ लगी है। किसी तांत्रिक की मदद लो।’

बेचारी घबराई हुई पत्नी के पास और कोई चारा नहीं था। उसने एक तांत्रिक की मदद ली जिसने नजऱ उतारने का आश्वासन दिया। तांत्रिक उनके घर आया। उसने कुछ क्रियाएं कीं और लोगों से थोड़ा इंतजा़र करने के लिए कहा। वह एक खुरपी लेकर घर के पिछवाडे़ गया और मोर्चा जीतकर हाथ में एक लकडी की गुडिया लेकर लौट आया। लोगों के बीच उसने गुडिया को तोड़ डाला, अपनी दक्षिणा ली और यह कहकर चलता बना कि र.स. शीघ्र ही ठीक हो जाएंगे। र.स. का परिवार आज भी उनके ठीक होने का इतंज़ार कर रहा है। उनकी हालत दिन पर दिन बिगडती जा रही है। 



उत्तराखंड के पहाड़ों में रूदप्रयाग शहर में एक सरकारी अस्पताल है। डॉ. राज ने हाल ही में वहां बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में कार्य आरंभ किया है। एक दिन रोगियों को देखने के दौरान उन्होंने अगले शिशु को बुलवाया। एक स्त्री भीतर आई और आंसू भरी आंखों से अनुनय करती हुई अपने बच्चे को लेकर स्टूल पर बैठ गई। बच्चा बुखार में तप रहा था। डॉ. राज ने उसे परीक्षण के लिए पलंग पर लिटाया और जैसे ही उसके वस्त्र हटाए, वे देखकर सन्न रह गए। बच्चे के पेट पर आग से दागे जाने के ताजा़ निशान थे। उन्होंने प्रश्‍न सूचक निगाहों से मां
को देखा। वह रोने लगी। बच्चे के पिता ने हादसा बयान किया कि मोहन नाम के इस बच्चे को दौरे पडते थे। गांव के ओझा ने उसका इलाज गरम लोहे की सलाखों से किया। फायदा कुछ नहीं हुआ। ‘डॉक्टर साहब, मेरे बच्चे को बचा लो, कहता हुआ वह डॉक्टर के चरणों में लोट गया।

मैं अपने अस्पताल में रोगियों को देख रहा था। काम समाप्त होने ही वाला था कि एक व्यक्ति ने हिचकिचाते हुए मेरे कक्ष में प्रवेश किया। उसके चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी। ‘डॉक्टर, क्या मैं आपसे कुछ देर अकेले में बात कर सकता हूं?’ मैंने मुस्कराकर उससे बैठने के लिए कहा, उसे भरोसा दिलाया। कुछ देर के इंतजा़र के बाद वह बोला, ‘डॉक्टर, मेरी हालत बहुत खऱाब है मैं अपनी मर्दानगी गवां चुका हूं। रात में जब मैं गहरी नींद में होता हूं मुझे एक कामुक स्त्री अपने बस में कर लेती है वह मुझसे यौन सम्बंध बनाती है और मेरी मर्दानगी को हर लेती है। मेरे परिवार ने मेरा विवाह भी तय कर दिया है। उन्हंे सच्चाई का पता नहीं है मुझे चिंता है कि मैं अपनी पत्नी को कभी संतुष्‍ट भी कर पाऊंगा? क्या आपके पास कोई ऐसी दवा है जो मेरी मर्दानगी वापस लौटा दे?’ 

वह व्यक्ति रूंआसा हो गया था। मैंने उससे पूछा, ‘तुम कैसे कह सकते हो कि तुम्हारी मर्दानगी नहीं रही?’ उसका चेहरा लाल हो गया। वह एक मिनट चुप रहा। फिर मानो कुछ निश्चय करके कहने लगा, ‘लगभग चार हफ्ते पूर्व एक दोस्त की सलाह पर मैं पहली बार किसी स्त्री के पास गया। वह देखने में सुंदर थी, उसने मुझे उकसाने की कोशिश की, काफी़ धीरज भी रखा लेकिन मैं तैयार नहीं हो सका। ढीला पड़ गया। मैंने कई बार कोशिश की पर कुछ नहीं कर पाया। मैंने उस बार इस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। दुबारा अपने दोस्त से मिला। वह मुझे एक तांत्रिक के पास ले गया। तांत्रिक ने थाड़ी झाड़ फूंक की और बताया कि मुझ पर एक जवान स्त्री का साया है इसीलिए मुझे स्वप्न दोश होते हैं। वह स्त्री नहीं चाहती कि मेरा विवाह हो। तांत्रिक ने मेरे लिए अनुष्‍ठान किया पर उससे कुछ हुआ नहीं। अब बस आप ही मेरा एक मात्र सहारा हैं।’

इस प्रकार की घटनाएं दुनिया भर में आम हैं। कवच और ताबीज़, आत्माएं, काला जादू और झाड फूंक का आसरा मानव सभ्यता शताब्दियों से लेती रही है। सामुदायिक अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि मनुष्‍य अक्सर, विकारों और दिमागी बीमारियों से राहत पाने के लिए प्रार्थना, अतीन्द्रिय शक्तियों के आह्वान, आस्था उपचार तथा तंत्र का सहारा लेते हैं। हालांकि इस प्रकार के तौर-तरीके विकासशील समाजों में अधिक दिखाई देते हैं किंतु ऐसा नहीं है कि औद्योगिक रूप से समृद्ध समाज में ये नहीं मिलते। पश्चिमी गोलार्द्ध में पांच में से एक परिवार इनकी शरण लेता है। अशिक्षा के चलते गरीब तो इनकी चपटे में आते ही हैं पर अमीर भी इनसे नहीं बच पाते। पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं न होने और होने पर भी उनसे मदद न मिल पाने पर लोग बाग इन पिछडी़ मान्यताओं का सहारा लेने लगते हैं। इन पिछडी़ मान्यताओं का अध्ययन करने से पहले, चलिए उन लोगों की तरफ लौट चलें जिनका हमने शरूआत में जिक्र किया था। आइए इनका विश्लेशण करें।

मीरा के बारे में थोड़ी गहराई से सोचें तो हम समझ जाएंगे कि उस पर किसी भूत वूत का साया नहीं था, बल्कि वह तो डिसोसिएटिव सोमेटाइजेशन यानी वियोजित कायिक विकार का दौरा झेल रही थी। उसका मस्तिष्क उसकी जटिल परिस्थितियों के कारण चकरा गया था। वह अपने माता-पिता की एकमात्र लाड़ली बेटी थी किंतु उसकी शादी के तुरतं बाद दोनों का स्वर्गवास हो गया था। मीरा समझदार थी पर उसे विवाह के बाद कभी अपनी काबिलियत दिखाने का मौका ही नहीं मिला। उल्टे उसे अपनी सास और पति से बार-बार गहरी मानसिक यंत्रणा मिलती थी जिसके सामने वह लाचार थी। एक दिन उसे अपनी सहेली रत्ना की मौत के बारे में पता चला। जाने अनजाने उसने रत्ना की पहचान को खुद पर ओढ़ लिया जिसके सहारे उसका बरसों का गुबार बाहर निकलने लगा और बदले में उसे अप्रत्याशित रूप से जिन लोगों को वह जानती भी नहीं थी, उन सबकी सहानुभूति मिल गई। 
गांव के बड़े बुजुर्ग जो जब तक उसके कष्टों के प्रति आंख मूंदे थे उन्हें उसके सास-ससुर को समझाने बुझाने का बहाना मिल गया। यह सब कुछ मीरा के अवचेतन में घटा। चेतनावस्था में तो वह जानती ही नहीं थी कि क्या कुछ घट चुका है। यह एक इस प्रकार की स्थिति है जिसमें किसी समुदाय के सामाजिक सांस्कृतिक विश्वास कष्ट में घिरी स्त्री की सुरक्षा के काम आए। वैसे अधिकांश स्थितियों में नतीजा़ इतना खुशग़वार नहीं भी होता। इस प्रकार के रूढ़िवादी आचारों से कैसे दुष्‍परिणाम निकलते हैं यह अन्य तीन दृष्‍टांतसें से स्पष्ट हो जाता है।

र.स. के आचरण में जो परिवर्तन लक्षित हुआ वह किसी तांत्रिक क्रिया का परिणाम नहीं था। र.स. डिप्रेशन यानी अवसाद ग्रस्त मानसिकता से जूझ रहे थे। उनके रोग लक्षण सुस्पष्ट थे। यदि परिजन उन्हें किसी मनोविशेशज्ञ के पास ले जाते तो उनकी हालत समझने में चिकित्सक को देर न लगती। चिकित्सक, निदान के बाद अवसाद रोधी दवाएं देता जिससे दो तीन सप्ताह में ही उनकी हालत में सुधार शुरू हो जाता।

रूद्रप्रयाग के बेचारे बच्चे को सिर्फ तेज बुखार के इलाज की जरूरत थी। शरीर का तापमान असामान्य स्तर तक बढ़ जाने के कारण उसे दौरे पड़ रहे थे। बुखार के कारण होने वाले ऐसे आक्षेप या ज्वर सम्बंधी दौरे बच्चों में आम हैं। ऐसे दौरों में सबसे बढ़िया तरीका है ज्वर को शीघ्रातिशीघ्र कम करने की कोशिश करना। बुखार में राहत देने वाली दवाएं जैसे पैरासिटामोल देने और गीले कपडे़ की पट्टी रखने से स्थिति पर काबू पाया जा सकता है। फिर भी बहुत से लोग दौरा पड़ने पर रोगी के शरीर की बेकाबू गतिविधियां देखकर इतना घबरा
जाते हैं कि वे उसे अतीन्द्रिय लोक का अभिशाप समझने लगते हैं।

अंत में उस व्यक्ति की बात जो मुझे सन 1982 में मिला था। आज वह एक सुखी विवाहित व्यक्ति है और दो किशोर बच्चों का पिता भी। उसकी समस्या गलत सामाजिक धारणाओं की भी थी और साथ ही जैविक क्रियाओं सम्बंधी अज्ञान की भी। उसका चित्त अत्यंत व्यग्र था और यही उसकी तबाही का कारण बन रहा था। स्वप्न दोष पुरूषों में एक सामान्य प्रक्रिया है, उसे वह किसी आत्मा का साया समझ रहा था और यही बात उसे खाए जा रही थी। उसे जरूरत थी तो बस व्यग्रतारोधी उपचार और सरल परामर्श की जो सामान्य होने में उसकी मदद कर सके।

विश्वास, व्यवहार और उनका प्रभाव प्राचीनकाल से ही मनुष्‍य सभ्यता एवं सामाजिक व्यवस्था में जादू टोना जैसे संरक्षक आत्माओं के प्रति आभार प्रदर्शन या ताबीज धारण करना मानव जीवन की सामान्य प्रकृति रही है। समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो ऐसा व्यवहार, अतीन्दिय्र जगत के सम्बंध में जनसामान्य के विश्वासों का समन्वयन करते हैं जिससे सामाजिक सम्बंध मजबुत होते हैं। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखने पर ऐसा व्यवहार आचार हमें प्रकृति पर नियंत्रण का अहसास दिलाते हैं जिससे मौसम के बदलते मिजाज प्राकृतिक आपदाओं एवं रोगों से उपजने वाली व्यग्रता कम होती है। जब इस प्रकार की स्थितियां सामने आती हैं तो लोग उनकी व्याख्या शैतानी प्रकोप या काला जादू के रूप में करने लगते हैं। अनुष्‍ठान से बुरी ताकतों का मुकाबला करना, उनकी पहचान करना  और उन्हें जीतकर भगा देना तथाकथित तांत्रिक या ओझा का काम माना जाता है।

झाड़ फूंक में भी लगभग यही बात होती है। शामान या विशेश पुजारी लोगों या स्थानों को ग्रसने वाले या उन पर बुरी नजर रखने वाले शैतानों और बुरी आत्माओं को भगाने के लिए अनुष्‍ठान करते हैं। वे अटकी और ग्रसित आत्मा को बचा लेते हैं और दैवी शक्तियों तथा सहायक आत्माओं का आह्वान करते हैं। काला जादू करने वाले तांत्रिक, ओझा और उन्हीं की श्रेणी के अन्य लोग अनेक प्रकार के जटिल नकारात्मक अनुष्‍ठान सम्पन्न करके लोगों को बरगला देते हैं। वे मिट्टी या मामे की किसी कील ठुंकी मूरत को जमीन में दबा देते हैं और मंत्र पढ़कर बुरी आत्माओं का आह्वान करते हैं। लोग अपने दुश्‍मनों को हानि पहुंचाने या उनका ख़ात्मा करने के लिए ऐसे लोगों की मदद लेते हैं। यह धारणा कि आत्माओं का अस्तित्व है युगों से हमारे भीतर रच बस गई है। इसे समझना कठिन भी नहीं कि ऐसी धारणा बनी कैसे होगी। हमारे किसी प्रिय व्यक्ति की मृत्यु पर हम सुधबुध खो बैठते हैं। गहन दुःख के क्षणों में कभी-कभार हमें मृत व्यक्ति को देखने या उसकी आवाज सुनने का आभास होता है। यादें दुःख की वेला में अजीब खेल खेलती हैं। इस प्रकार के विभ्रमों से ही यह विश्वास पनपता है कि मृत्यु के बाद भी आत्मा रूप में व्यक्ति का कोई अंश विद्यमान रहता है और जिस तरह लोग भले बुरे होते हैं आत्माएं भी भली-बुरी हो सकती हैं।

शैतान या बुरी और कुटिल आत्माएं रोग ग्रस्त मन की विचित्र एवं असंतत मनः स्थिति में जगह बनाने लगती हैं। लगभग सभी बड़ी बीमारियों में खास तौर पर मन की रूग्णता में लोग कहते पाए गए हैं कि उन्होंने जो देखा और सुना है उसे दूसरे नहीं समझ सकते।

मीडिया, सिनेमा, यहां तक कि हैरी पॉटरों, बेतालों का भी लगातार यही जोरदार प्रयास है कि हम अविश्वसनीय में विश्वास करते रहें। झाड़ फूंक करने वाले, आस्था उपचारक और ओझा सभी मानसिक रोगों के निवारण के लिए जटिल अनुष्‍ठानों, आहवान और मंत्रोच्चारण का सहारा लेते हैं। इनमें से बहुत से लोग मानव आचरण की गहरी समझ और अध्ययन के कारण मानसिक रोगों को समझने में भी सक्षम होते हैं। रोग यदि मध्यम स्तर पर होता है तो ये उसे दूर करने में भी काफी स्थितियों में कामयाब होते हैं और इनकी सख्त हिदायतें भी अपना काम करती हैं।

झाड़ फूंक भी कभी-कभार काम कर जाती है, बशर्ते रोग अपनी सीमा में हो और इसलिए भी कि रोगी को जो ध्यान और सहानुभूति मिलती है उससे दिमाग शांत होने लगता है। जहां ये तरीके असिद्ध हो जाते हैं, वहीं वे काल्पनिक ग्रह-नक्षत्रों के प्रभाव और भाग्य को जिम्मेदार ठहरा देते हैं। कुछ चतुर आस्था उपचारक रोगी को यह कह कर अस्पताल भेजते हैं कि उसके भाग्य में अमकु स्थान (अस्पताल) से ही स्वस्थ होना बदा है। ऐसा सुझाव, चाहे घुमा-फिरा कर ही क्यों न दिया गया हो रोगी के हित में हो सकता है। कई बार जब खुद को उपचार करने वाला कहने वाले ऐसे लोग अपने विचारों की पुष्टि के लिए या मानसिक रोगी को बस में करने के लिए अमानवीय तरीके काम में लाते हैं तब परिणाम दुःखद हो जाता है। अनेक मानसिक रोगियों की ‘चिकित्सा’ हेतु प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों में शारीरिक हिंसा अपनाई जाती है या जंजीरों से पीटा जाता है। कभी-कभी यह त्रासदी अपने चरम रूप में पहुंच जाती है कुछ वर्ष पूर्व, तमिलनाडु में दस मानसिक रोगियों को जंजीरों से बांधकर एक छोटे से कमरे में बंद कर दिया गया था। अचानक आग लगी और वे बेचारे दस के दस उसमें भस्म हो गए।
"swami vishambhar das ji will tell you  tona totka"
swami vishambhar das ji

Phone : +91-9166654466

Mail Us : loveastro121@gmail.com

Follow Us : swami.vishambhardas@facebook.com